Tuesday, January 22, 2013

चाँद

मैं बुलाऊं न बुलाऊं
मैं आऊं न आऊं
एक चाँद मुझसे मिलने
हर शाम छत पर आता है 

जिस दिन मुझे ये बात समझ में आई
मैं छत पर गया

चाँद मुझे एकटक रहा था घूर
और मैंने पाया
कि छत कितनी भी ऊंची हो
वो चाँद से रहती है दूर

इसलिए
आज मैंने अपनी कश्ती
झील मैं उतार दी है