सूरज की किरणें रात भर दुनिया की थकान
मिटने का इंतज़ार करती हैं और फिर सुबह होते ही वो सूरज से आज़ाद हो धरती पर
पहुँच जाती हैं । पृथ्वी और सूरज के बीच के लम्बे काले ब्रह्माण्ड को
चीरती हुई, धरती के वायुमंडल में आकर ये किरणें अपनी अपनी टोलियाँ बनाकर
निकल जाती हैं । उनके होने के अहसास से पूरा जगत अनेक रंगों से भर जाता है
। कोई बारिश की बूंदों के आरपार छुपम छुपाई खेलती हैं, तो कोई मंद गति से
बहने वाले कोहरे पर थिरकती हैं । बहुत सी टोलियाँ नर्म घास पे जाकर कूदती
हैं, उनकी रगों में स्फूर्ति भर देती हैं ।
इन्हीं में से कुछ का प्रिय खेल होता है
नदी के साथ दौड़ लगाना । वो दिन भर घाट किनारे बैठी रहती हैं । जब जी आता है
घाट की मिट्टी ओढ़ लेती हैं, नदी में डुबकी लगाती हैं, खेलती हैं ,
सहेलियों से रूठती हैं मनाती हैं । इन्हीं में से एक किरण , उत्साही, नदी
में कहीं बहुत भीतर चली गई । शाम हो गई सभी किरणें उसे ढूँढने लगीं , पर वो
हठी थी , नहीं आई ।
सूरज ने अपना कालीन बिछा दिया । सभी
किरणों को आवाज़ दी कि अब चलो शाम हो गई है । उन्होंने अपने पिता से कहा कि
एक किरण नदी में कहीं रह गई है । उसे ढूंढना पड़ेगा । सूरज उदास हो गया । उस
किरण के लिए उसका मन व्याकुल हो उठा । सांझ की बेला में उसे ढूँढना
मुश्किल था । सूरज समय चक्र से बंधा है ।" हमें शाम होते ही जाना पड़ेगा ।
अब सुबह आएँगे । "
और ऐसे सूरज अपनी सब किरणों को लेकर चला गया ।
रात होते ही खोई हुई किरण कुछ घबराई ।
टिमटिमाती हुई वो सतह पर पहुंची पर सूरज की कालीन सिमट चुकी थी । चारों
तरफ अँधेरा था । वो डर गई । अँधेरे की दुनिया में वो अकेली थी और सबसे अलग ।
किसी तरह वो नदी के बीच एक पत्थर पर चढ़ के
बैठ गई । यदा कदा नदी गर्जना करती । पत्थर पर टकराकर उसकी लहरें मानों हवा
में सांप बनाती । पूरी रात किरण उसी पत्थर पर दुबकी, सहमी बैठी रही ।
सुबह हुई । सूरज ने अपना कालीन फिर बिछाया
। ठिठुरती हुई किरण उसपर चढ़कर वापस सूरज के घर पहुँच गई । सब सहेलियों से
मिली । फ़िर छोटी सी वो किरण सूरज पर बहुत भड़की । " मैं खो गई थी आपने मुझे
ढूँढा क्यों नहीं ! " । सूरज उदास हो गया, "मैंने तुम्हे बहुत ढूँढा
पर मैं प्रकृति के नियमों में फंसा हूँ , मुझे तो रोज़ उगना और ढलना है ,
मुझे जाना पड़ा " किरण नहीं मानी " आप सबसे शक्तिशाली हो । परम प्रतापी ।
सारी दुनिया में अपने जैसे अकेले । कुछ देर और नहीं रुक सकते थे ? आपको तो
ये करना चाहिए था की ज़मीन पर उतरते और उस नदी को ही सुखा देते और मुझे
अपने साथ लेकर आते "
सूरज झेंप गया … बड़ी देर बाद बोला " मैं तुमसे बहुत प्रेम करता हूँ , चाहता
तो मैं ये था की पूरी पृथ्वी को ही वाष्प में बदल दूं और तुम्हे ले आऊं ,
मैं ऐसा चाहता था, ऐसी शक्ति भी है मेरे पास , पर … ऐसा करना संभव नहीं
था पर … मैं रुक नहीं सकता … " । "
और अगर मैं सुबह मिलती ही नहीं तो ? फ़िर , फ़िर क्या करते ? " । "… ऐसे
मैं मुझे बहुत दुःख होता , शायद मैं बहुत विलाप करता "