इन्हीं में से कुछ का प्रिय खेल होता है नदी के साथ दौड़ लगाना । वो दिन भर घाट किनारे बैठी रहती हैं । जब जी आता है घाट की मिट्टी ओढ़ लेती हैं, नदी में डुबकी लगाती हैं, खेलती हैं , सहेलियों से रूठती हैं मनाती हैं । इन्हीं में से एक किरण , उत्साही, नदी में कहीं बहुत भीतर चली गई । शाम हो गई सभी किरणें उसे ढूँढने लगीं , पर वो हठी थी , नहीं आई ।
सूरज ने अपना कालीन बिछा दिया । सभी किरणों को आवाज़ दी कि अब चलो शाम हो गई है । उन्होंने अपने पिता से कहा कि एक किरण नदी में कहीं रह गई है । उसे ढूंढना पड़ेगा । सूरज उदास हो गया । उस किरण के लिए उसका मन व्याकुल हो उठा । सांझ की बेला में उसे ढूँढना मुश्किल था । सूरज समय चक्र से बंधा है ।" हमें शाम होते ही जाना पड़ेगा । अब सुबह आएँगे । "
और ऐसे सूरज अपनी सब किरणों को लेकर चला गया ।
रात होते ही खोई हुई किरण कुछ घबराई । टिमटिमाती हुई वो सतह पर पहुंची पर सूरज की कालीन सिमट चुकी थी । चारों तरफ अँधेरा था । वो डर गई । अँधेरे की दुनिया में वो अकेली थी और सबसे अलग ।
किसी तरह वो नदी के बीच एक पत्थर पर चढ़ के बैठ गई । यदा कदा नदी गर्जना करती । पत्थर पर टकराकर उसकी लहरें मानों हवा में सांप बनाती । पूरी रात किरण उसी पत्थर पर दुबकी, सहमी बैठी रही ।
सुबह हुई । सूरज ने अपना कालीन फिर बिछाया । ठिठुरती हुई किरण उसपर चढ़कर वापस सूरज के घर पहुँच गई । सब सहेलियों से मिली । फ़िर छोटी सी वो किरण सूरज पर बहुत भड़की । " मैं खो गई थी आपने मुझे ढूँढा क्यों नहीं ! " । सूरज उदास हो गया, "मैंने तुम्हे बहुत ढूँढा पर मैं प्रकृति के नियमों में फंसा हूँ , मुझे तो रोज़ उगना और ढलना है , मुझे जाना पड़ा " किरण नहीं मानी " आप सबसे शक्तिशाली हो । परम प्रतापी । सारी दुनिया में अपने जैसे अकेले । कुछ देर और नहीं रुक सकते थे ? आपको तो ये करना चाहिए था की ज़मीन पर उतरते और उस नदी को ही सुखा देते और मुझे अपने साथ लेकर आते "
सूरज झेंप गया … बड़ी देर बाद बोला " मैं तुमसे बहुत प्रेम करता हूँ , चाहता तो मैं ये था की पूरी पृथ्वी को ही वाष्प में बदल दूं और तुम्हे ले आऊं , मैं ऐसा चाहता था, ऐसी शक्ति भी है मेरे पास , पर … ऐसा करना संभव नहीं था पर … मैं रुक नहीं सकता … " । " और अगर मैं सुबह मिलती ही नहीं तो ? फ़िर , फ़िर क्या करते ? " । "… ऐसे मैं मुझे बहुत दुःख होता , शायद मैं बहुत विलाप करता "
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