Friday, January 24, 2020
कबूतर
एक बार एक कबूतर अपनी चोंच में एक कविता दबा के उड़ रहा था । उसे एक बहेलिये ने देख लिया । बहेलिये को लगा कि शहर में उस कबूतर का अच्छा मोल मिल सकेगा। उसने जाल तैयार किया और कबूतर के उसमें फंसने के इंतज़ार करने लगा । पर कबूतर को दुनियादारी में कोई दिलचस्पी नहीं थी सो वो बहेलिये के जाल में नहीं फंसा । तब एक नौसिखिए शिकारी की नज़र उस बेपरवाह परिन्दे पर पड़ी और उसने एक तीर चला दिया। तीर कबूतर के सीने के पार गया पर उसने कविता नहीं छोड़ी। दूर एक बेनाम शायर ने कबूतर को गिरते देख उसकी ओर लपका। कबूतर ने शायर की गोद में दम तोड़ दिया । शायर ने कविता को पढ़ नीचे अपना नाम लिख दिया । कबूतर दफन हो गया । शायर अमर हो गया ।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment