breathing grass
Friday, January 24, 2020
कबूतर
एक बार एक कबूतर अपनी चोंच में एक कविता दबा के उड़ रहा था । उसे एक बहेलिये ने देख लिया । बहेलिये को लगा कि शहर में उस कबूतर का अच्छा मोल मिल सकेगा। उसने जाल तैयार किया और कबूतर के उसमें फंसने के इंतज़ार करने लगा । पर कबूतर को दुनियादारी में कोई दिलचस्पी नहीं थी सो वो बहेलिये के जाल में नहीं फंसा । तब एक नौसिखिए शिकारी की नज़र उस बेपरवाह परिन्दे पर पड़ी और उसने एक तीर चला दिया। तीर कबूतर के सीने के पार गया पर उसने कविता नहीं छोड़ी। दूर एक बेनाम शायर ने कबूतर को गिरते देख उसकी ओर लपका। कबूतर ने शायर की गोद में दम तोड़ दिया । शायर ने कविता को पढ़ नीचे अपना नाम लिख दिया । कबूतर दफन हो गया । शायर अमर हो गया ।
एक छोटी कहानी
बिना धुन के एक गीत
सदियों की वादियों में
अधमरा सा पड़ा था
एक सरगम ने उसकी कलाई को थामा
और उसके सीने पर रख कर कान
सुनी उसकी धड़कन
अब भी चल रही थी
मद्धम मद्धम
सरगम गीत के सभी बोलों में बिंध गई
खुद खो गई और गीत हो गई
फिर उस गीत का क्या क्या हुआ?
एक मुसाफ़िर ने उसे उठा लिया
और अपनी अंटी में छुपा लिया
और किसी शाम अपने क़बीले में गुनगुना लिया
फिर किसी आशिक़ ने
गीत को बना कर कोई फ़ूल
अपनी लैला के बालों में लगा दिया
खुशबू बन कर गीत बह गया हवाओं के साथ
और बरस गया मिट्टी पर बनकर बरसात
गीत के बोल बदले, ताल बदली
पर नहीं बदली उसके दिल में बसी सरगम
गीत में थी सरगम, सरगम ही से था गीत हरदम
Monday, October 28, 2013
Ek ghazal
हर अहसास को कुचल हर ख्वाब को मिटा दिया
जिस गुलशन को बसाया तूने , उसमें कोई एक दरख़्त तो छोड़ दे
हाथ से प्याला मत छीन कि तूने फ़िर फरेब किया
मैं अपना मज़हब छोड़ दूंगा , तू अपना मज़हब छोड़ दे
तुझे जाना ही है ज़ालिम तो मेरा क़त्ल करके जा
यूं हँस के, तसल्ली दे के , जुदा होना छोड़ दे
मैं पहले बहुत खूबसूरत था , मोहब्बत ने मुझे बिगाड़ दिया
मैं फ़िर मुस्कुराना शुरू कर दूंगा, तू मेरा मज़ाक बनाना छोड़ दे
और खींच के थप्पड़ मारूंगा , शायर, अब जो मेरे सामने आए
इश्क़ खुदा है, इश्क़ खुदा है, कहकर बहकाना छोड़ दे
और आज कुछ कड़ी , कुछ ज़यादा कह गया मैं
दिल ने कहा अब उनपर लिख ही दे, यूं डरना छोड़ दे
जिस गुलशन को बसाया तूने , उसमें कोई एक दरख़्त तो छोड़ दे
हाथ से प्याला मत छीन कि तूने फ़िर फरेब किया
मैं अपना मज़हब छोड़ दूंगा , तू अपना मज़हब छोड़ दे
तुझे जाना ही है ज़ालिम तो मेरा क़त्ल करके जा
यूं हँस के, तसल्ली दे के , जुदा होना छोड़ दे
मैं पहले बहुत खूबसूरत था , मोहब्बत ने मुझे बिगाड़ दिया
मैं फ़िर मुस्कुराना शुरू कर दूंगा, तू मेरा मज़ाक बनाना छोड़ दे
और खींच के थप्पड़ मारूंगा , शायर, अब जो मेरे सामने आए
इश्क़ खुदा है, इश्क़ खुदा है, कहकर बहकाना छोड़ दे
और आज कुछ कड़ी , कुछ ज़यादा कह गया मैं
दिल ने कहा अब उनपर लिख ही दे, यूं डरना छोड़ दे
Sunday, September 15, 2013
सूरज की एक किरण
इन्हीं में से कुछ का प्रिय खेल होता है नदी के साथ दौड़ लगाना । वो दिन भर घाट किनारे बैठी रहती हैं । जब जी आता है घाट की मिट्टी ओढ़ लेती हैं, नदी में डुबकी लगाती हैं, खेलती हैं , सहेलियों से रूठती हैं मनाती हैं । इन्हीं में से एक किरण , उत्साही, नदी में कहीं बहुत भीतर चली गई । शाम हो गई सभी किरणें उसे ढूँढने लगीं , पर वो हठी थी , नहीं आई ।
सूरज ने अपना कालीन बिछा दिया । सभी किरणों को आवाज़ दी कि अब चलो शाम हो गई है । उन्होंने अपने पिता से कहा कि एक किरण नदी में कहीं रह गई है । उसे ढूंढना पड़ेगा । सूरज उदास हो गया । उस किरण के लिए उसका मन व्याकुल हो उठा । सांझ की बेला में उसे ढूँढना मुश्किल था । सूरज समय चक्र से बंधा है ।" हमें शाम होते ही जाना पड़ेगा । अब सुबह आएँगे । "
और ऐसे सूरज अपनी सब किरणों को लेकर चला गया ।
रात होते ही खोई हुई किरण कुछ घबराई । टिमटिमाती हुई वो सतह पर पहुंची पर सूरज की कालीन सिमट चुकी थी । चारों तरफ अँधेरा था । वो डर गई । अँधेरे की दुनिया में वो अकेली थी और सबसे अलग ।
किसी तरह वो नदी के बीच एक पत्थर पर चढ़ के बैठ गई । यदा कदा नदी गर्जना करती । पत्थर पर टकराकर उसकी लहरें मानों हवा में सांप बनाती । पूरी रात किरण उसी पत्थर पर दुबकी, सहमी बैठी रही ।
सुबह हुई । सूरज ने अपना कालीन फिर बिछाया । ठिठुरती हुई किरण उसपर चढ़कर वापस सूरज के घर पहुँच गई । सब सहेलियों से मिली । फ़िर छोटी सी वो किरण सूरज पर बहुत भड़की । " मैं खो गई थी आपने मुझे ढूँढा क्यों नहीं ! " । सूरज उदास हो गया, "मैंने तुम्हे बहुत ढूँढा पर मैं प्रकृति के नियमों में फंसा हूँ , मुझे तो रोज़ उगना और ढलना है , मुझे जाना पड़ा " किरण नहीं मानी " आप सबसे शक्तिशाली हो । परम प्रतापी । सारी दुनिया में अपने जैसे अकेले । कुछ देर और नहीं रुक सकते थे ? आपको तो ये करना चाहिए था की ज़मीन पर उतरते और उस नदी को ही सुखा देते और मुझे अपने साथ लेकर आते "
सूरज झेंप गया … बड़ी देर बाद बोला " मैं तुमसे बहुत प्रेम करता हूँ , चाहता तो मैं ये था की पूरी पृथ्वी को ही वाष्प में बदल दूं और तुम्हे ले आऊं , मैं ऐसा चाहता था, ऐसी शक्ति भी है मेरे पास , पर … ऐसा करना संभव नहीं था पर … मैं रुक नहीं सकता … " । " और अगर मैं सुबह मिलती ही नहीं तो ? फ़िर , फ़िर क्या करते ? " । "… ऐसे मैं मुझे बहुत दुःख होता , शायद मैं बहुत विलाप करता "
Tuesday, January 22, 2013
चाँद
मैं बुलाऊं न बुलाऊं
मैं आऊं न आऊं
एक चाँद मुझसे मिलने
हर शाम छत पर आता है
जिस दिन मुझे ये बात समझ में आई
मैं छत पर गया
चाँद मुझे एकटक रहा था घूर
और मैंने पाया
कि छत कितनी भी ऊंची हो
वो चाँद से रहती है दूर
इसलिए
आज मैंने अपनी कश्ती
झील मैं उतार दी है
मैं आऊं न आऊं
एक चाँद मुझसे मिलने
हर शाम छत पर आता है
जिस दिन मुझे ये बात समझ में आई
मैं छत पर गया
चाँद मुझे एकटक रहा था घूर
और मैंने पाया
कि छत कितनी भी ऊंची हो
वो चाँद से रहती है दूर
इसलिए
आज मैंने अपनी कश्ती
झील मैं उतार दी है
Thursday, December 27, 2012
बचाव
बड़े लोगों ने,
दंगा कराया
शहर जलाया और लहू बहाया
वो बहता हुआ लहू ... मेरी चौखट तक भी आया
मैं ज़ोर से चिल्लाया
मुझे छोड़ दो भाई ! मैं एक आम इंसान हूँ
मैं उतना ही हिन्दू हूँ जितना मैं मुसलमान हूँ
दंगा कराया
शहर जलाया और लहू बहाया
वो बहता हुआ लहू ... मेरी चौखट तक भी आया
मैं ज़ोर से चिल्लाया
मुझे छोड़ दो भाई ! मैं एक आम इंसान हूँ
मैं उतना ही हिन्दू हूँ जितना मैं मुसलमान हूँ
Monday, September 10, 2012
सच क्या है ?
सच ये है की धूप है बारिश है
झूठ ये है की एक सुन्दर नीली छतरी है
छतरी धूप को भगाती नहीं धूप से बचाती है
धूप ज्यादा तेज़ हो
तो छतरी से भी कुम्हला देती है
बारिश ज़ोरों से हो
तो हाथों से छुड़ा देती है
फिर हम भागते हैं
हाथ उठाये , छतरी को थामने ।
झूठ ये है की एक सुन्दर नीली छतरी है
छतरी धूप को भगाती नहीं धूप से बचाती है
धूप ज्यादा तेज़ हो
तो छतरी से भी कुम्हला देती है
बारिश ज़ोरों से हो
तो हाथों से छुड़ा देती है
फिर हम भागते हैं
हाथ उठाये , छतरी को थामने ।
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