Monday, June 23, 2025

एक बात

मैं तुम्हें समझना चाहता हूँ 
पर तुम मुझे समझ नहीं आती 

हँस, मुस्कुरा, खुश रहा कर
मेरे भेजे में ये इतनी बात नहीं आती

कुछ किया और होता तो रुक जातीं मेरी माँ
एक ये बात दिल से निकल नहीं पाती 

अब सिर्फ़ वहीं सुख़न फ़हम हैं इस शहर में
जिन्हें मेरी ग़ज़लें पसंद नहीं आती

हम क्या करें

हज़ारों हज़ार सूरज जल रहे हैं 
फिर भी है अंधेरा तो हम क्या करें

हमें जितना खेलना था हम खेल लिए 
वक्त अब भी है बकाया तो हम क्या करें 

तुमने हमारा दिल दुखाया है बहुत 
तुम्हारा इरादा नहीं था तो हम क्या करें 

बुरा हो जाता है अच्छे लोगों के साथ भी 
तुम्हारे हिस्से में हम आए तो हम क्या करें

नदारद

है नदारद है नदारद 
आँखों से है नींद नदारद 
दिल से है उम्मीद नदारद 
मन से है हर गीत नदारद 
तक़दीर से है जीत नदारद 
नीचे पैरों से ज़मीन नदारद 
मैं हूँ या हूँ मैं भी नदारद 

फूलों से हैं रंग नदारद 
बस्ती से हैं लोग नदारद
शहरों से कानून नदारद 
दुनिया से भगवान नदारद 
बाज़ू में से खून नदारद 
माथे पर से चैन नदारद 
है नदारद है नदारद 
मैं हूँ या हूँ मैं भी नदारद

दिखाई नही देता

यूँ देखने को भी क्या है इस दुनिया में 
अच्छा है ‘फ़िरोज़’ कि तुझे दिखाई नहीं देता 

यहाँ सबके होंठों पर उसी का नाम है 
दिल में किसी के देखो तो दिखाई नहीं देता 

जो उसकी आँख से डरते हैं , वो मर रहे हैं 
वो उन्हें क्या देखेगा जो दिखाई नहीं देता 

छल, कपट, हिंसा,झूठ,फ़रेब; तुम ये सब 
यूँ ही करते हो न कि वो दिखाई नहीं देता 

वो दुखी होकर ये दुनिया छोड़कर चला गया 
तुम कहते हो वो है नहीं क्योंकि दिखाई नहीं देता

Friday, January 24, 2020

कबूतर

एक बार एक कबूतर अपनी चोंच में एक कविता दबा के उड़ रहा था । उसे एक बहेलिये ने देख लिया । बहेलिये को लगा कि शहर में उस कबूतर का अच्छा मोल मिल सकेगा। उसने जाल तैयार किया और कबूतर के उसमें फंसने के इंतज़ार करने लगा । पर कबूतर को दुनियादारी में कोई दिलचस्पी नहीं थी सो वो बहेलिये के जाल में नहीं फंसा । तब एक नौसिखिए शिकारी की नज़र उस बेपरवाह परिन्दे पर पड़ी और उसने एक तीर चला दिया। तीर कबूतर के सीने के पार गया पर उसने कविता नहीं छोड़ी। दूर एक बेनाम शायर ने कबूतर को गिरते देख उसकी ओर लपका। कबूतर ने शायर की गोद में दम तोड़ दिया । शायर ने कविता को पढ़ नीचे अपना नाम लिख दिया । कबूतर दफन हो गया । शायर अमर हो गया । 

एक छोटी कहानी



बिना धुन के एक गीत
सदियों की वादियों में
अधमरा सा पड़ा था
एक सरगम ने उसकी कलाई को थामा
और उसके सीने पर रख कर कान
सुनी उसकी धड़कन
अब भी चल रही थी
मद्धम मद्धम
सरगम गीत के सभी बोलों में बिंध गई
खुद खो गई और गीत हो गई
फिर उस गीत का क्या क्या हुआ?
एक मुसाफ़िर ने उसे उठा लिया
और अपनी अंटी में छुपा लिया
और किसी शाम अपने क़बीले में गुनगुना लिया
फिर किसी आशिक़ ने
गीत को बना कर कोई फ़ूल
अपनी लैला के बालों में लगा दिया
खुशबू बन कर गीत बह गया हवाओं के साथ
और बरस गया मिट्टी पर बनकर बरसात
गीत के बोल बदले, ताल बदली
पर नहीं बदली उसके दिल में बसी सरगम
गीत में थी सरगम, सरगम ही से था गीत हरदम

Monday, October 28, 2013

Ek ghazal

हर अहसास को कुचल हर ख्वाब को मिटा दिया
जिस गुलशन को बसाया तूने , उसमें कोई एक दरख़्त तो छोड़ दे

हाथ से प्याला मत छीन कि तूने फ़िर फरेब किया
मैं अपना मज़हब छोड़ दूंगा , तू अपना मज़हब छोड़ दे

तुझे जाना ही है ज़ालिम तो मेरा क़त्ल करके जा
यूं हँस के, तसल्ली दे के , जुदा होना छोड़ दे

मैं पहले बहुत खूबसूरत था , मोहब्बत  ने मुझे बिगाड़ दिया
मैं फ़िर मुस्कुराना शुरू कर दूंगा, तू मेरा मज़ाक बनाना  छोड़ दे

और खींच के थप्पड़ मारूंगा , शायर, अब जो मेरे सामने आए
इश्क़ खुदा  है, इश्क़ खुदा है, कहकर बहकाना छोड़ दे

और आज कुछ कड़ी , कुछ ज़यादा कह गया मैं
दिल ने कहा अब उनपर लिख ही दे, यूं डरना छोड़ दे